पत्थर घिस जात है…
बार- बार रस्सी चले से
पत्थर घिस जात हैं |
बूंद -बूंद बरसात से,
खाली घड़ा भर जात हैं |
पग-पग चलन -चलन से,
ए धरती नापत जात हैं |
ठूमरा-ठूमरा मिट्टी रखन के ,
वोकर घर बन जात हैं |
चिरियां-चिरियां चहन-चहन के,
जंगल हर गूंज-गुंजात हैं |
लकरी-लकरी रखन-रखन के,
एक गठ्ठा बन जात हैं |
पाई-पाई पैसा जोर के,
मानव धनवान हो जात हैं |
मानव-मानव जूर-जूर के,
एक समाज बन जात हैं |
जात-पात में बंधे रहो ते,
ये जीवन हर बकवास हैं |
खूशः-खूशः रहके जी ले,
बस यही जीवन के सौगात् हैं |
बस यही जीवन के रास् हैं |
राहुल गनवीर