पत्थर खाते क्यों फिरते हो
यूं पीछे पीछे प्यार जताते क्यों फिरते हो
मजनू की तरह पत्थर खाते क्यों फिरते हो
ये वो रास्ते नहीं जिन पे सफर किया जा सके
इश्क की पगडंडियों पे डगमगाते क्यों फिरते हो
दौलत कितनी भी हो खुशी नहीं खरीद सकते
कागज के इन टुकड़ों पे यूं इतराते क्यों फिरते हो
नादान नहीं है दुनिया भला बुरा सब जानती है
खुदगर्ज लोगों को तुम समझाते क्यों फिरते हो