पत्थर की शिला
मेरी आंख बन जाये
पत्थर की
जो तेरा दीदार न
पा सके
मेरे जज्बात जम जायें
शिराओं में मेरी
एक बर्फ की लहर से
जो तेरी आवाज की गूंज की
एक झंकार न सुन सकें
यह असम्भव है पर
तू लौट आ मेरे जीवन में दोबारा
मैं शिला बन चुकी हूं
एक पत्थर की
कोई हाथ अब
तेरे सिवाय ऐसा नहीं जो
मेरे अहसासों को
तराश सके
और लौटा सके
मुझे वापिस
मेरे आकार का रुतबा
पहले सा।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001