पत्थर का शहर
यह पत्थर का शहर है प्यारे,
तो इसमें क्या ढूंढ रहा है ,
यहां नहीं अब कुछ भी बिकता,
बस मानव मानवता बेच रहा है ।
गगन चूमते भवन देख लो,
भौतिक युग की चमक देख लो,
क्यों पागल सा घूम रहा है ।
त्याग ,तपस्या ,मेहनत ,क्षमता।
करुणा दया प्रेम और समता
इनको मार बहुत दिन बीते, फिर भी इनको खोज रहा है
या तो हथोड़ा ला रिश्वत का,
या फिर फोन किसी मंत्री का ,
चमचागिरी के इस युग में, न्याय की आशा देख रहा है।
जैसे भी हो जग में जी ले।
तू क्या इस जग को तो रच के खुदा भी खुद कोस रहा है।
भाग्य विधाता जो भी है मेरे और तेरे
इसमें कोई नहीं है शक वह है सब गूंगे और बहरे।
इनके आगे रोना रोकर, क्यों आंखें अपनी फोड़ रहा है ।
जब तेरी नहीं कोई सिफारिश ,
घूम जा जैसे लावारिस ,
बिना सिफारिश मरना मुश्किल, तू जीने की सोच रहा है। बड़े-बड़े थे वैभवशाली,
पर गए है , हाथ वह खाली प्लीज बैठ जाओ।
यह तो अटल सत्य है जो सत्य सभी जग भूल रहा है।