पत्थर का बनाना पड़ता है
कभी उम्मीद के दिये को मन मे ही बुझाना पड़ता है,
आते हुए अश्को को रोककर मुस्कुराना पड़ता है,
नज़रें हमारी भी तरसती है उनके दीदार को,
पर क्या करे,
अपनो के खातिर दिल को पत्थर का बनाना पड़ता है,
अपने ही आसूंओं से उनकी यादों को मिटाना पड़ता है,
दर्द कितना भी बढ़ जाए अंदर ही दबाना पड़ता है,
सहम हम भी जाते है उनसे दूर हो जाने के ख्याल से,
पर क्या करे,
अपनो के खातिर दिल को पत्थर का बनाना पड़ता है,
याद कितनी भी आये उन्हें भुलाना पड़ता है,
ना चाह कर भी किसी और से रिश्ता निभाना पड़ता है,
दिल आज भी धड़कता है उन्हीं के नाम से,
पर क्या करे,
अपनो के खातिर दिल को पत्थर का बनाना पड़ता है।
✍️वैष्णवी गुप्ता(Vaishu)
कौशाम्बी