पत्ते है हम
इन पत्तों की तरह बेजान बना दिया है
लड़े जो तूफानों सी हवा से
पर उनको अपनो ने ही गिर दिया है ।
बेजान पड़े है वो धारा पर ,
पर क्या पता किसने उनको
कचरा समझकर जला दिया है ।
वो जलते रहे आग से , आह तक नहीं किया है
किसी ने उसे चंदन समझकर माथे पर लगा लिया है ।