पतझड़ का प्रेम
प्रेम,
मुमकिन है कि अब
निःशब्द हो चला हो
रूमानी बातों से दूर हो,
उम्र की तकलीफें व परेशानियाँ
रोक देती हैं,
झिड़क कर
प्रेम अब दिखता है
बच्चों को एक दूसरे की
शिकायतों में,
उलाहनों में
यदा कदा की
मीठी फटकार में,
करवट बदली
तो घुटनो की टीस
और फिर वो ही घिसी पीटी सी
बातें,
कितनी बार कहा है
कि ज्यादा काम मत किया करो
पर तुम कब सुनती हो मेरी?
पुराने एक एलबम की,
वक़्त के साथ
धुंधलाती हुई तस्वीरों
पे उँगलियाँ फेरता
मन लौट ही जाता है
अतीत की उन मीठी
यादों में।
प्रेम मूक होकर भी
लिपटा पड़ा है,
इर्द गिर्द,
एक दूसरे की देखभाल में,
ढाँढस और दिलासा के बीच
बस अब वो रूमानी बातें
नहीं करता,
गहरे सागर
में लहरें कहाँ
शोर करती हैं
एक उम्र के बाद रिश्ते
इजहार के मोहताज
नहीं होते
जरूरत भी क्या है?