पतंगा हूँ शम्मा में जलने दो यारो।
गज़ल
122…….122……122……122
पतंंगा हूँ शम्मां मे जलने दो यारों।
मुहब्बत में हमको पिघलने दो यारों।
करूंगा वतन से मुहब्बत कज़ा तक,
वतन पर जिएं और मरने दो यारो।
बढ़ी इतनी महगाई बेरोजगारी,
है सरकार अपनी तो चलने दो यारों।
चलेंगे गिरेंगे उठेंगे चलेंगे,
कि गिरकर के उठकर सँभलने दो यारो।
बिके बैंक बीमा एयर इंडिया भी,
फिर भी बुलेट ट्रेन चलने दो यारो।
रखीं दूरियाँ बंद दरवाजे घर के,
तो दिल मे ही अपने उतरने दो यारों।
रखो मत परिंदों को कैदेकफ़स में,
इसे मुक्त होकर के उड़ने दो यारों।
न नफरत सियासत से मतलब हमें है।
हुँ ‘प्रेमी’ मुझे प्यार करने दो यारों।
…..✍️ प्रेमी