पढोगे नाम मेरा…
पढोगे नाम मेरा तुम कभी अख़बारों में
मैं भी शामिल हूँ मेरे यार गुनहगारों में
क्या समय आया कि अब क़त्ल यहाँ होते हैं
मंदिरों, मस्जिदों में, चर्च में, गुरुद्वारों में
बड़े महँगे हैं खिलौने भी यहाँ मिट्टी के
अब भी रोते हैं जी बच्चे यहाँ त्योहारों में
खुशी को खो दिया पाकर जिन्होंने जीवन में
हमारा नाम भी है वक़्त के उन मारों में
कभी किसी की भी इज्जत का न सौदा करना
वरना बिकना पड़ेगा तुमको भी बाज़ारों में
भरे बाजार में ईमान जब से बेचा है
पहन के घूमता हूँ सूट-बूट कारों में
कभी जुर्रत की जो सच बोलने की ‘संजय’ ने
उसे चिनवाया गया ईंट की दीवारों में