पढ़ लेना मुझे तुम किताबों में..
काव्य सर्जन —
पढ लेना मुझे किताबों में-
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जब याद मेरी आने लगे ,
बदली बनकर छाने लगे!
धडकन तन थरथराने लगे ,
तब पढ लेना तुम,
मुझे किताबों में!
भाव बंधे उमड़ा चिन्तन ,
रसाल शब्द से उर मन्थन !
प्रीत का अनुरागी चंदन,
लेखन में जीवित मन दर्पण !
कागज पर छलका गहरा है ,
प्रकृत मसि चित्र उकेरा है !
स्मृतियों में अक्स लुभाने लगे,
तब पढ लेना तुम!
मुझे किताबों में !!
व्यथित तृषित दिल छलका था ,
तप्त शूल सम अश्रु ढुलका था !
उर अन्तर गम की दहक भरी ,
सजल नयन फिर मुस्काया था!
कुछ अनकहा था लावा भीतर,
विवश हृदय भाव अनमोल ,
भाव सुमन लिखे दिल खोल !
तब पढ लेना तुम!
मुझे किताबों में!!
मौन श्वांसों का स्पंदन था ,
अन्तर हृदय में क्रंदन था !
प्राणों का मौन उत्सर्जन था ,
मोह काटता उर मंथन था !
देह छूटती पर,आत्म मिलन ,
अहसासे बयां बिन मोल ,
लिखा अन्तर पट खोल !
तब पढ लेना तुम!
मुझे किताबों में!!
✍️ सीमा गर्ग ‘मजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।