“पड़ाव”
“पड़ाव”
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उम्र का पड़ाव
एक और आया
माथे पर बड़ गयी
एक लकीर
चेहरे पर खिंच गई,झुर्री
एक और
दाँतों में से कुछ हुये कम
कंधों पर बोझ
नहीं था
पर लगे मुझे
झुके झुके
आँखों की धुंधलाहट
चिड़चिड़ापन,झुँझलाहट
बड़ गई बेवजह
पता नहीं क्यों?
डा. ने कहा
दिल छोटा हो गया है।
दिमाग की चूलें हिल रही हैं
याद रखो उम्र
तुम्हारी बड़ रही है।
लोग तुम्हें चाहे
न पहचाने
तुम लोगों को
याद रखो।
पता अपना
सदा साथ रखो।
हर झुर्री का हिसाब रखो
मत घूमो यूँ ही
चेहरा टाँगे
अगले साल फिर आयेगा जनमदिन
तुम चाहे होगे या नहीं
चेहरा होगा टंगा तुम्हारा
सुंदर से फ़्रेम में
हार से सज़ा
भूल जायेंगे
रख कर तुम्हें कबाड़
मे रख कर
कुछ साल बाद
कहानी ख़त्म हुई
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राजेश”ललित”