पगलु जस्ट चील…
पगलु जस्ट चील…
सम्हाल के रहना भइया यहां,
यह है भारत देश,
गरीबों की कोई सुनता नही,
अमीरों की है ऐश,
विकास के नाम का यहां,
सरकार दिखाती है रील,
पगलु जस्ट चील…
जिधर देखो हर तरफ़,
राजनीति का है बाजार सजा,
एक तरफ़ तो जीवन है,
दूसरी ओर है कजा,
इतना वे हमको चूसेंगे,
जितना देंगे ढील,
पगलु जस्ट चील…
भ्रस्टाचारी तन्त्र का,
यहां है बोलबाला,
जितनी है काली कमाई,
उतना ही है हवाला,
दुकान अमीरों की खुले,
गरीबों की हो सील,
पगलु जस्ट चील…
खा चुकी है राजनीति,
मानवता का रंग,
हिन्दू-मुस्लिम के झगड़े में,
यहाँ सभी है तंग,
अच्छे दिन की आस में,
सब मरने लगे तिल-तिल,
पगलु जस्ट चील…
खो गया है गन्दी राजनीत में,
शांति और प्रेम का मंत्र,
भाईचारा देश का,
यही है लोकतंत्र,
हिन्दू-मुस्लिम भाइयो का,
कभी तो मिलेगा दिल,
पगलु जस्ट चील…
यश कीर्ति की गान अपनी,
कर रहे हैं चौकीदार,
उनको कुछ भी पता नही,
यहाँ मची है हाहाकार,
भारत देश की जनता का,
यहां दहला है दिल,
पगलु जस्ट चील…
उड़ गया है राजनीति से,
देशप्रेम का रंग,
सभी दलों में छिड़ी हुई है,
सिर्फ स्वार्थ की जंग,
सरकार की जुमलेबाजी से,
सबका मन गया है हिल,
पगलु जस्ट चील…
अमीरों की है मौज यहां,
गरीबो की है लूट,
सब जनता परेशान है,
कि किस्मत गई है फुट,
जितना का सेवा नही,
उतना आये बिल,
पगलु जस्ट चील…
डूबा के पूरी अर्थव्यवस्था,
विदेश करे प्रवास है,
विकास के नाम पर,
बनाया बस संडास है,
जनता को बेवकूफ बनाकर,
इनका चेहरा गया खिल,
पगलु जस्ट चील…
अंदर से खोखली है,
बाहर से झकास है,
चौकीदार हूँ देश का,
करते जितने का प्रयास है,
जितना भुगताया जनता को,
अब परिणाम जाएगा मिल,
पगलु जस्ट चील…
हिन्दू मुस्लिम के खबरों में,
जनता को उलझाया है
करोड़ों लूटने वालों को,
देश से भगाया है,
जनता ऐसी भड़की है,
अब दुनिया जाएगी हिल,
पगलु जस्ट चील…
पगलु जस्ट चील…
विनय कुमार करुणे