पगली
मैले – कुचले
कटे – फटे थे वस्त्र
मासूम सा चेहरा
डरी – सहमी निगाहें
अजीब सी वहशत से
दो – चार थी।
बेवजह हँसती, बार – बार
इधर – उधर देखती
यहाँ – वहाँ कुछ खोजती
दुनिया की हलचल
और रंगीनी से बेजार थी।
हमने देखा उसे तो पूछा
यह “पगली” आई कहाँ से
और है कौन …?
पता चला –
इंसान की हैवानियत
व नीचता का
जीता – जागता सबूत
वो लड़की सामूहिक
बलात्कार का शिकार थी।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।