*** पगडण्डियां ललचाती ***
चलो अब जीवन-पथ पर पगडण्डियां ललचाती है
सपाट सड़क आम रास्ता सुगम कह पाती
नज़ाकत या नफ़ासत से जीवन-पथ पर चलना
निगाहें कब तलक आम से ख़ास हो पाती
?मधुप बैरागी
उम्र आने पर शज़र भी ढह जाता
पता नहीं आदमी मन की कह पाता
जमाना है जमाने- सा पड़ेगा निभाना
जिंदगी है मौत से अब रिश्ता निभाना ।।
?मधुप बैरागी
नजीरें देतें हैं जो हमको ईमानदारी की
जीवन में उनके क्यों है परत बेईमानी की
ख़ुद तो आम खाते हैं हमें परहेज सिखलाते
आज खुद ब खुद सीखी हमने खुदगरज की ।।
?मधुप बैरागी