पकड़ो आत्म-सुबोध,दिव्य गुरु का साया तुम
तुम ,नव संवत पर बनो, मानवता-महबूब|
ग्रहण करो सद्ज्ञान तब, परमानंदी-खूब||
परमानंदी-खूब, मिलेअनुपम विकास-कन|
अमल प्रेममयरूप,और सद्गुण-प्रकाश मन||
कह “नायक” कविराय, छोड़ दो जग-माया-दुम|
पकड़ो आत्म-सुबोध,दिव्य गुरु का साया तुम||
बृजेश कुमार नायक
जागा हिंदुस्तान चाहिए एवं क्रौंच सुऋषि आलोक कृतियों के प्रणेता
महबूब=प्रेमी
परम=अत्यंत
आनंदी=प्रसन्न रहने बाला
खूूूूब=उत्तम