उड़ चल पंछी
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
दे रहा चुनौती नील गगन,
टकराने दे तू आज पवन।
अपने डैनों का ले संबल,
कर देना नभ में तू हल चल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
ऑंधी की तू परवाह न कर,
तू तूफान से ले टक्कर।
देखे तुझको संसार सकल,
मचा दे तू आज उथल-पुथल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
मथना है यह आकाश तुझे,
लाना है वो प्रकाश तुझे।
ज्योतिर्मय होकर निर्मल,
तेज प्रखर फैलाना निश्छल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
लेकर चोंच में तुझे तिनका,
रचना एक नीड़ भी अपना।
रहे नहीं यहाँ कोई विकल,
हो आश्रयहीन और निर्बल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
सृष्टि है तू ही सृष्टा भी है,
दृष्टि है तू ही दृष्टा भी है।
जगा सबमें उत्साह नवल,
बन जा तू ही प्रेरणा प्रबल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
मौत भी गर आ तुझसे मिले,
रोए वो लगाकर तुझको गले।
दुनिया में कुछ ऐसा कर चल,
सबके सपने सच करता चल।
उड़ चल पंछी तू अब उड़ चल।
—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)