पंछी
मृदुल आवाज़ मे गाते पंछी,
उड़ते है गगन में,
धरती पे वह पैर न रखते,
सीधा उड़ जाते है वन में।
नदी का मीठा जल पीकर,
मिठास भरा अन्न खाते वे एक शण में,
जहाँ भी जाते प्रेम का रस ढिंढोलते,
लोगों की चाह(उन्हे पास रखने की चाह),
रह जाती है मन में।
– सतबीर सिंह