पंछी सी भरो उड़ान
देखते नहीँ
पंछी ऊँचाई
वह तो
भरते है
खुल कर
उड़ान
एक परिवार सा
होता है
उनके लिए
ज़मीं औ
आसमां
रख कर
हौंसला
लगन और
मेहनत का
भरते उडान
लक्ष्य पर
तभी
चूमेंगी कदम
सफलताएं
न हो हताश
न होओ
विचलित
असफलताओं से
जो भरेगा
उड़ान
वही तो
देख पाऐगा
जमीं
तभी तो
कर पाऐगा
पंख मजबूत
उम्मीदों पर
माता पिता की
उतरो खरा
भरो उड़ान
जिन्दगी में
पहुँच जाओगे
जरूर
मंजिल तलक
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल