पंछियों का गगन
यह गगन तो है इन आजाद परिंदों का ,
यह जान है इन परिंदों की ,
यही इनका अभिमान है ।
जिंदा नहीं रह सकते यह बिना उड़ान भरे, क्योंकि उड़ना ही तो इनका स्वाभिमान है।
हम धन्यवाद करते हैं, राइट बंधुओं का क्योंकि हम मानते हैं उन्होंने हमें उड़ान दी।
पर हम यह भूल गए उनमें जहाज बनाने की तमन्ना एक परिंदे नहीं जगा दी।
इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह पंछी किस देश से आता है ,
यह तो मस्त रहते हैं अपनी धुन में,
मानो इनका कोई बिछड़ा साथी बड़ी दूर से आया है।
न इन्हें कोई बॉर्डर है लगता ,
नहीं कोई सीमा है इनकी ।
जहां तक दिल करता है उड़ जाते हैं,
यही तो महा नियत है इनकी।
यह कभी नहीं कहता कितना आसमान है हमारा ,
यह तो बस जानते हैं कि आसमान ही है हम पंछियों का सहारा।
काश हम इंसान भी इन पंछियों की तरह होते ,कभी ना हम इस जमीन के टुकड़े के लिए लड़ते व रोते।
जिस प्रकार यह सभी पंछियों का आसमान अपना है ,
कोई लड़ाई नहीं, गैर नहीं ।
क्या हम मनुष्य नहीं रह सकते लड़े बगैर यही।