पंचवक्त्र महादेव
गीतिका
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पंचवक्त्र महादेव प्रभु का, नित्य करें हम ध्यान।
सारे जग की रक्षा करते, कर लेते विषपान।
सफल नहीं हो पाया दशानन, अटल रहा कैलाश।
नहीं हिला था लेश मात्र भी, शिव का निवास स्थान।
चर्म किया करते हैं धारण, बदन रमाते भस्म।
सर्प गले में लिए सुशोभित, रहते अन्तर्ध्यान।
बहुत शांति है मुखमंडल पर, मनभावन अति दिव्य।
ऋषि देव गंधर्व हैं करते, महिमा का गुणगान।
शीश धरे गंगा की धारा, जटा सुहाए खूब।
संग हिमालय सुता पार्वती, लिए मधुर मुस्कान।
करें सवारी नन्दी की जब, पूरा शिव परिवार।
अखिल विश्व में भक्तजनों को, मिलता शुभ वरदान।
सत्य सनातन भक्ति भावना,हर मन में है खूब।
बनी रहेगी युगों युगों तक, भारत की पहचान।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २८/०५/२०२४