पंचतत्व के पिंजरे में, मन पंछी रहौ बसै
पंचतत्व के पिंजरे में मन पंछी रहौ बसै
रूप रसादि गंध में अटका, माया में रहौ फंसै
ध्यान न जावे ज्ञान ज्योति में, चित् विषयन में रहौ लगै
माया ब्रह्म जीव न जानै, आत्मज्ञान में नहीं जगै
कौन हूं मैं, कहां से आया, मन समझन नहीं चहै
जन्म मरण के चक्र के आगे, मन कछु नहीं गहै
सुरेश कुमार चतुर्वेदी