*न धन-दौलत न पदवी के, तुम्हारे बस सहारे हैं (हिंदी गजल)*
न धन-दौलत न पदवी के, तुम्हारे बस सहारे हैं (हिंदी गजल)
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(1)
न धन-दौलत न पदवी के, तुम्हारे बस सहारे हैं
मेरे सरकार हम केवल, हमेशा से तुम्हारे हैं
(2)
ये पर्वत झील नदियाँ चाँद, सूरज में रखा क्या है
तुम्हारी ही है यह रचना, तुम्हारे दृश्य सारे हैं
(3)
बहुत नजदीक से तुमको, हजारों बार जब देखा
सदा अदृश्यता के चित्र, बस तुमने उतारे हैं
(4)
चले आते हैं चुपके से, कभी सरकार मिलने को
अदा यह जाने कैसी है, इसी पर खुद को हारे हैं
(5)
समंदर अब भी प्यासा है,तरसता चंद बूँदों को
बड़े लोगों की मत पूछो, सब भीतर से खारे हैं
(6)
नशा-मस्ती-अदाऍं हैं, तुम्हारे रूप का जादू
तुम्हारे मदभरे नयनों के, कितने ही इशारे हैं
(7)
रखा क्या इन नजारों में, मेरे सरकार को देखो
न कोई चित्र है उनका, मगर वह कितने प्यारे हैं
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रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451