न तुम ढूंढ पाए न हम ढूंढ पाए
यादों के खजाने भरे थे पड़े ,पर लोग उसको कम ढूंढ पाए।
जोर जेहन पे हमने डाला कभी ,बमुश्किल किसी का रहम ढूंढ पाए।
भावनाओं को ढूंढे जमाना हुआ क्या गजब का ये फसाना हुआ,
खो चुकी भावनाएं खोयी रह गयीं, न हम ढूंढ पाए न तुम ढूंढ पाए।
यादों में खट्टी मीठी यादें भी थीं।
खुशियों की थोड़ी मियादें भी थीं।
यादों को लिखने में उम्र बीतेगी अब, बस इतना सा भरम ढूंढ पाए।
खो चुकी भावनाएं खोयी रह गयीं, न हम ढूंढ पाए न तुम ढूंढ पाए।
अब तो खुद की फिकर कोई करता नहीं।
एक दूजे के लिए अब कोई मरता नही।
कोरे पन्ने पे सच लिख दिया जाएगा ,गर कोई ऐसी कलम ढूंढ पाए।
खो चुकी भावनाएं खोयी रह गयीं, न हम ढूंढ पाए न तुम ढूंढ पाए।
रूठने की वजह अब बेवज़ह हो गयी है।
सच से झूठ की झूठी जिरह हो गयी है।
सच को सच कहना मुनासिब हो जहां, काश ऐसा धरम ढूंढ पाए।
खो चुकी भावनाएं खोयी रह गयीं, न हम ढूंढ पाए न तुम ढूंढ पाए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी