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24 Sep 2017 · 1 min read

न जन्म से न धर्म से

न जन्म से न धर्म से, इंसान बनता है अपने कर्म से,
जब कभी होता है हनन कंही अधिकारों का यहां,
पुकार तो पुकारती रहती है अपनी आवाज़ शर्म से,

ढोंगी पाखंडी समाज में जब उतरती है धुप की किरण,
चिर देती है हर अँधेरे को, होकर बिलकुल बेशर्म,
फ़ैल जाता है उजाला, जो चुप्पी तोड़ दे इंसान का भृम,

खवाबों और ख्यालों में फर्क सिर्फ नींदों का होता है,
जो आँख खुल जाये तो, ख्याल कदम रखते है,
वो जुड़ जाते है ख्यालों से, फिर करना होता है कर्म,
तनहा शायर हूँ

Language: Hindi
574 Views
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