नज़्म / कविता
#ज़िंदा_लाश
अब तलक गर्म पड़ी है मेरी नींदों की राख
इतनी जल्दी मेरी आँखों को कोई ख़्वाब न दे
तुझ को मलूम नहीँ है तो बताता हूँ मैं
मेरे कमरे में हैं बिखरी हुई यादें तेरी
इसकी रग रग में अभी तक है तेरे लम्स की बू
इसकी साँसों में अभी तक है तेरी रानाई
इसके कानों में महकती हैं तेरी आवाज़ें
फ़र्श पर रौशनी फैली है तेरे क़दमों की
तेरी पाज़ेब की झंकार मोअत्तर है अभी
इसकी दीवारें तेरा अक्स समेटे हुए है
आईने में है तेरा हुस्न अभी भी रौशन
अब भी लेटी है थकन तेरी , मेरे बिस्तर पर
तेरी परछाई सी दहलीज़ पे बैठी हुई है
तू ही बतला के तुझे भूलूँ तो कैसे भूलूँ
तेरे ग़म में मुझे बर्बाद तो हो लेने दे
दो घड़ी आ के तेरी क़ब्र पे रो लेने दे
तुझ को मालूम नहीं है तो बताता हूँ मैं
मौत ने सिर्फ़ तुझी को ही नहीं मारा है
बन गया हूँ मैं तेरी मौत से इक ज़िंदा लाश
और मेरी रूह तेरी क़ब्र में लेटी हुई है
#मोहसिन_आफ़ताब_केलापुरी
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