नज़्म / कविता
अज़ीम है तेरा ख़ुदा
अज़ीम है तेरा ख़ुदा , रहीम है तेरा ख़ुदा।
तू उसकी बात मान ले , वो तेरी बात मानेगा।
तू अपने सर को ख़म तो कर
ये आँख अपनी नम तो कर
दुआ को अपने हाथ उठा
उसे तू अपने दुख बता
यक़ीन कर यक़ीन कर
क्यों फिर रहा है दर ब दर
न ऐसे उस से मुंह छुपा
पनाह में तू उसकी आ
तू ज़र्रा ए हक़ीर है
ख़ुदा वो बेनज़ीर है
सब उसकी दस्तरस में है
ये दुनिया उसके बस में है
तू उस से इल्तजा तो कर
ख़ुदा , ख़ुदा , ख़ुदा तो कर
है तेरा दिल ख़ुदा का घर
तू अपने दिल को पाक कर
गुनाह पे अपने रो कभी
सियाह दिल को धो कभी
वो बख़्श देगा फिर तुझे
तू उसकी बात मान ले
अज़ीम है तेरा ख़ुदा , रहीम है तेरा ख़ुदा।
तू उसकी बात मान ले , वो तेरी बात मानेगा।
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी✍?