नज़रों में नहीं गिरता
झुक जाता हूँ मगर पैरों में नहीं गिरता
नज़र में रहता हूँ नज़रों में नहीं गिरता
हमेशा रहता है माँ की दुआ का साया
थक जाता हूँ मगर रास्तों में नहीं गिरता
रिश्तों की कसौटी पर ऐसा फूल हूँ मैं
कभी टूटा भी तो गैरों में नहीं गिरता
जिसको जुनून है मुझे बरबाद करने का
मैं फिर भी उसकी नफ़रतों में नहीं गिरता
मुझे तोड़ने वाले मेरा हौसला देख
कभी टूटा भी तो टुकड़ों में नहीं गिरता
वो खुदगर्ज़ लोग थे इस कदर गिरे सागर
इतना तो दोनों जहानों में नहीं गिरता
सागर