नोट-बंदी
हर तरह से हर गति अब आज मंदी हो गई ।
जब से मेरे देश में ये , नोट-बंदी हो गई ।
मिट्टी के भाव से बिकता है किसानों का अनाज ,
निर्धनों के घर में ज्यादा और तंगी हो गई ।
बैंक की लाइन में अब भी भीड़ केवल निर्धनों की,
घर बैठे ही बड़ों-बड़ों की नयी करेंसी हो गई ।
वेईमानी करने का मौका हमें पहले नहीं था ,
नोट-बंदी की कृपा से अपनी चाँदी हो गई ।
श्वेत ने काले को बिल्कुल दूधिया-सा कर दिया,
बैंक बालों की चुनरिया आज धानी हो गई ।
बैंक का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है अब भी,
पतिव्रता कहते थे जिसको, आज रंडी हो गई ।
दम नहीं ‘ईश्वर’ यहाँ पर शेर की भी गर्जना में ,
अब व्यवस्था गीदड़ों की चाल- मंडी हो गई ।
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवम् शिक्षक ।