नोट की मार से जन सिसकता हुआ
212 *4
नोट की मार से जन सिसकता हुआ
जब न रोटी मिले तो बिलखता हुआ
भीड़ में वो सुबह से खड़ा शाम तक
पर न पैसे मिले तो उखड़ता हुआ
बस परेशान होता रहे आम जन
मस्त नेता तभी वो चहकता हुआ
नोट अपने नहीं जो बताये अब तलक
अब बिचारा डरा है सनकता हुआ
खूब दौलत कमाई उसी ने तभी
आज छापा पड़ा तो बिखरता हुआ