नैहर
शीर्षक-नैहर
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नैहर जाने के नाम से सभी,
खुश हो जाती बेटियां।
आंखों में आती बार-बार,
बचपन में बांधी दो चोटियां।
गली-मोहल्लों में जब सभी,
सखियां खेला करते गोटियां।
विष-अमृत और खो-खो
खेला करते थे,
अब ये खेल भूल गई बेटियां।
जब सावन आते ही नैहर में,
माता-पिता और भाई से
मिलती बेटियां।
घर का आंगन खुशियों से गूंजता,
जब राखी पर नैहर आती बेटियां।।
बाबुल का घर छोड़कर जब,
ससुराल चली जाती बेटियां।
घर का कोना-कोना सूना लगता,
पिया घर जब चली जाती बेटियां।।
माता-पिता रो -रोकर दुलारते,
मेरी लाडो, क्यों पराई होती बेटियां।
बचपन से ले यौवन तक पाला-पोसा,
फिर क्यों! दूसरे घर जातीं बेटियां!
यह कैसा प्रभु का विधान है,
सदियों से पराई होती रही बेटियां।
आज भी चांद पर पहुंच चुकी हैं,
फिर भी! अपनी नहीं दूसरे घर
की होती हैं बेटियां?
सुषमा सिंह*उर्मि,,