नेह ( प्रेम, प्रीति, ).
कैसा तेरा नेह प्रिय
रुलाए तू आंसू हम ही पोंछे प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, ज़ख्म दे तू
मरहम हम ही लगातें बैठे प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, मैं रूठ जाऊं
तो मैं ही तुझे मनाऊं प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, तू ही ख्वाब दिखाएं प्रिय
तू ही ख्वाब तोड़े प्रिय, कैसा तेरा, ये न्याय प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, तू चाहे जान से भी ज्यादा मुझे
लेकिन मेरे मन भावों को देख, हाल भी न पूछे प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, तू दुनियां दारी की बातें, समझे आसानी से प्रिय
मुझे अब तक न समझ पाए, न जान पाए, बीते ऐसे कितने साल प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, तू कह दे वो जो तेरे मन को भाए प्रिय
अगर मैं कह दूं वो, जो मेरे मन को भाए, होश तेरे उड़ जाएं प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, तू करता है नेह मुझे प्रिय
फिर दिखता क्यों नहीं मुझे तेरा नेह प्रिय
कैसा तेरा नेह प्रिय, जो तेरे मन में आए,
तू बिना सोचे बोलता ही जाए प्रिय
एक बार तो सोच लेते प्रिय बोलने से पहले,
मुझे घायल कितना करते हैं, शब्दों के ये बाण तेरे….
स्वरचित रचना
_ सोनम पुनीत दुबे