नेतृत्व
धीर का स्वभाव वो
जला सके सुषुप्त भी ।
प्रमुख हो प्रबुद्ध हो
जीव के प्राण भी ।।
एक ही हुंकार हो
मानवों के देह में ।
जय जय कार हो
समग्र ब्रह्मांड में ।।
चलो न अब अधीर से
वीर से कदम चले ।
आज राह–राह से
पूछते वो फिर चले ।।
विरुद्ध भाव समाप्त हो
जो दया पथ पर चले ।
वशीकृता हुई धरा
जो मानवों के हित जिए।।