‘नेता जी बचालो देश को’
नेता जी बचालो देश को,
अब घूमो ना परदेश को।
अर्थव्यवस्था की डूबी लुटिया,
लाचार हो रही घर की बिटिया।
अनभिज्ञ नहीं तुम सच्चाई से,
मान लो भीषण संदेश को।
घमासान-सा युध्द मचा है,
कोना खाली कोई नहीं बचा है।
धर्म-दुहाई व जाति-पाँति ने,
झकझोर दिया परिवेश को।
हृदय धधक रहे माताओं के,
जूँ क्यों न रेंगे आकाओं के ?
राम राज्य का झांसा देकर,
दीजो न बढ़ावा भ्रष्टेश को।
क्यों जनता को कूट रहे हो,
कर-पर-कर दे लूट रहे हो!
क्या ये अच्छे दिन हैं अपने,
थूकों आँसू लगा हड़प रहे,
भारत जन-जन रक्तेश को!
आँसू ,कटे प्याज तब बहते हैं,
दाम सुनकर ये सब कहते हैं।
बहा खून के आँसू जनता,
कोसे ‘मयंक’ जनादेश को।
रचयिता : के.आर.परमाल ‘मयंक’