नेता जी के कारनामे…
मौसमी फलों के सेवन
की तरह है ,चुनावी मौसम
में नेताओं का दरवाजे पर आना!
घर-घर जाकर खाना खाने की प्रथा
और मीडिया में छाने की वजह
कि आज नेता जी ने लख्खु रिक्शे
वाले के घर चटनी रोटी खाई!
बड़े-बड़े वादे किये, इससे भी इम्प्रेशन
कुछ काम जान पड़ा तो लक्खू की
बीवी को कुछ कपड़े कुछ चीजें मुहैया
और पउवा बाँटने लगे! फिर क्या?
जब तक चुनावी बयार हर जगह
हाहाकार अबकी बार नेता जी की सरकार
बयार खत्म हुई जीत गये नेताजी
अब बारी है तुम्हारी उनके दरवाजे पर
घुटने टेकने की!तुमने तो उन्हें चटनी रोटी
खिलायी वे तुम्हें सीधे खड़े तक नहीं होने
देंगे अपने मार्बल युक्त दरवाजे पर
भूल से भी अगर हाथ छू गया उनकी
सफारी से तो गंगा जल से शुद्धीकरण
कर हजार बातें,जो तुम्हारे ह्रदय को बेधती
…अन्त में यही सुनने को मिलता
जब देखो तब मुँह उठाये चले आते हैं
जैसे कोई काम नहीं!
पर तुम तो महा बेशर्म इसको भी बर्दाश्त
कर लेते फिर कुछ दिन बाद उसी
संगमरमरी गली में जा धमकते!
लेकिन अब यही जवाब होता अरे नेता
जी अभी सो रहे हैं तुम्हें भी कोई नहीं रहता
क्या?जब देखो चले आते हो!
ये उनके दरवाजे पर लगे चार चमचे कहते
और वो तुम्हें उस संगमरमरी फर्श पर पैर
भी ना रखने देते!
बड़ा क्रोध आता तुम्हें तुम तब यही कहते
अब बयार खत्म हो गयी तो यही दशा
होगी! इससे तो अच्छा अपनी चटनी रोटी
ही भली!जाने क्यूँ वोट दे दिया?
लेकिन कसूर तुम्हारा नहीं?
ये तो मौसमी फल है फिर मौसम
पर ही मिलेंगे ना उससे पहले कहाँ?
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)