नेताओं की दीक्षा
चलो चलायें एक अभियान ।
नवगुणों से सबका हो कल्याण ।।
करना है बस एक और काम।
भ्रष्टाचार का करने इन्तजाम ।।
हुई थी जिस प्रकार शिक्षकों की शिक्षा।
बाल मन को समझने की सुन्दर दीक्षा।।
सोचता क्या है एक बालक।
है चाहता क्या एक बालक।।
था लिया शिक्षकों ने इसका प्रशिक्षण।
करने को उनका सुन्दर मार्गदर्शन।।
होने चाहिये नेताओं की भी इस बात की प्रशिक्षण।
कि क्या चाहते हैं आज उनसे प्रजाजन।
क्यों न हो ऐसा अब सर्वत्र इम्तहान ।।
क्यों ?भाई बाल मन को समझाता है बालमनोविज्ञान।
तो नेताओं को भी होना ही चाहिये थोड़ा प्रजाज्ञान।।
और ये भी हो चार खण्डों में विभाजित ।
जिस भांति शिक्षकों के लिए था यह विभाजित ।।
हो इनका भी बाकायदा एक प्रशिक्षण।
अब निकाला जाए एक ऐसा निर्देशन।।
प्रजाजन से ही चुने जाएं ऐसे विद्वान ।
जो हो बहुत ही अधिक ज्ञानवान ।।
नेता बनने की योग्यता केवल वोट तक ही सीमित न हो।
हो चुनाव उनका जो इस परीक्षा में केवल उत्तीर्ण हो।।
देखा जा रहा आज क्योंकि मिल जाते हैं कुछ ऐसे ।
जिनमें मिलता ही नहीं कुछ ज्ञान की बूँद विशेषे।।
भला इसमें क्यों है उतना अधिक और सोचना।
पुरातन काल में भी चुनाव की है ऐसी मिलती
विवेचना।।
नववर्ष का उपरोक्त तरीके से स्वागत होना चाहिये
क्यों नहीं कुछ ऐसे नवीन परम्परा का प्रादुर्भाव होना चाहिये ।।