#नेकी ही धनवान
#नमन मंच
#रचनाकार राधेश्याम खटीक
#विषय नेकी ही धनवान
#दिनांक २४/१०/२०२४
#विद्या गीत
कल का पाप आज दुखदाई….
समझो कुदरत की पद चाप…..
कल का पाप आज दुखदाई,
समझो कुदरत की पद चाप !
कल का पाप आज दुखदाई,
समझो कुदरत की पद चाप !
ये दावा नेकी ही धनवान…
दावा नेकी ही धनवान…
ये दावा नेकी ही धनवान…
जाल बिछा पाखंड वाला
लूट रहे बेचारों को !
शर्म हया को भूल के दुनियां,
मस्त है आज व्यभिचारों में !
नैतिकता को देखने वाली
आंखें है हैरान ?
आंखें है हैरान ?
ये दावा नेकी ही धनवान…
दावा नेकी ही धनवान…
ये दावा नेकी ही धनवान…
शोहरत का कुछ नहीं भरोसा
कल किसी और की हो जानी है
दुनिया को कुछ देते जाओ,
सारी दुनिया पा ली है !
छोड़ेगा कल ये दुनियां….
आज करो कुछ ध्यान,
आज करो कुछ ध्यान,
ये दावा नेकी ही धनवान…
दावा नेकी ही धनवान…
ये दावा नेकी ही धनवान…
स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान