नृत्यांगना का जादू
नृत्यांगना का जादू
युवा महोत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रम में
विश्वविद्यालय के रंग कलामंच पर
एक हरियाणवी सुन्दर नृत्यांगना ने
हरियाणवी लोकगीत की लय पर
ढोलक की तेजतर्रार लयबद्ध थाप पर
पतली कमर से ऐसा ठुमका लगाया
कि हम वहीं पर धाराशायी हो गए
दिल के अरमान हम पर हावी हो गए
लोग नृत्यांगना की कला को देख रहे थे
लेकिन हम तो उसमे निज अक्ष को देख रहे थे
दर्शकदीर्घा तालियों की आवाज़ से गूंज उठी
पर हमें ताली बजाने की कहाँ सुध थी
भविष्य योजना बनाने में इतने लीन थे कि
उनसें मुलाकात,बात, सोगात,प्रेम क्रियान्वयन
तक के कार्यक्रम कल्पना में ही बना डाले
जहाँ हमारी मनोस्थिति उस वक्त
त्रेता युग के विश्वामित्र से भिन्न नहीं थी
वहीं वह सुन्दर आकर्षक नृत्यांगना
स्वर्ग की अप्सरा मेनका से कम नहीं थी
जहाँ ताल पर उसके कदम थिरक रहे थे
वहीं उसके कदमताल की थरकन से
दिल के मजबूत जोड़ हिल रहे थे
उसके मुखमंडल चेहरे के रंगीन हाव भाव
मधुर संगीत की बात बयां कर रहे थे
हम हजारों की भीड़ में बेसुध मुर्छावस्था में
उसके हाव भाव संकेतों का हर्षित होकर
चिल्लाते हुए ताली बजाकर जवाब दे रहे थे
जैसे संसद में कोई प्रस्ताव पेश कर रहे थे
उसके चेहरे की मंद मंद मधुर मुस्कान
हमें मीठी असहनीय पीड़ा दे रही थीं
लेकिन जैसे ही निर्णायक अंतिम घड़ी से पहले
ढोलक की तेजतर्रार अंतिम थाप पर
उसनें अपने कदमों तनबदन को विराम दिया
हमारे प्रेम के फ्यूज वहीं पर ही उड़ गए
हम बेजान बेसुध पुतले से समान थे
लेकिन आँखों में अब भी उसी के ख्वाब थै
तभी पास वालों ने हमें जोर से हिलाया
हमें हमारी यथास्थिति से अवगत करवाया
सुखविंद्र सिंह मनसीरत