नूरे-उल्फ़त लिए ख़ुर्शीद को आते देखा
——ग़ज़ल—-
2122 1122-1122-22
आँधियों में भी चराग़ों को जलाते देखा
डूबती क़श्ती को तूफां से बचाते देखा
वह तो रहमान है मज़लूम का होता रहबर
गिरने वाले को भी हाथों से उठाते देखा
देख कर प्यास में पानी के बिना कुनबे को
एँड़ी के जोर से दरिया को बहाते देखा
तीरग़ी देख के बढ़ता हुआ इस खिलक़त में
नूरे-उल्फ़त लिए ख़ुर्शीद को आते देखा
सबका मुख़्तार है रज़्ज़ाक़ वही दुनिया का
उसको बंद डिब्बे में चींटी को खिलाते देखा
जिनकी लौ लग गयी “प्रीतम” मेरे उन आक़ा से
उनको इक रोज़ पनाहों में बुलाते देखा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
आतिशे-इश्क़ में वो गरमी है कि जिसमें “प्रीतम”
मोम तो मोम है पत्थर को पिघलते देखा