नुमाइश
आगे बढ़ने की होती है चाहत जिसे वो,
कभी किसी की आजमाइश नहीं करते।
चट्टानों को चीरकर निकाल लेते हैं रास्ता,
अपने करतब की कभी नुमाइश नहीं करते
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597