नील पदम् के दोहे
ओ ग़रीब क्या देखी नहीं, तूने अपनी औकात,
किससे पूछकर देखता, आगे बढ़ने के ख़्वाब ।
जीत के पीछे हार है, हार के पीछे जीत,
रात गए दिन होत है, यही पृकृति की रीत ।
सपना ऐसा देखिये , नींद नहीं फिर आए ,
सपना हो साकार जब, चैन तभी मिल पाए ।
बर्फ़ पिघल गई दर्द की, निकली आशा की धूप,
अँधेरा तब तक रहा, जब तक न निकले कूप।
चौराहे पर आ खड़े, अब जायें किस ओर,
नहीं पता था आएगा, जीवन में ये भी दौर।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”