नील छंद (वर्णिक) विधान सउदाहरण – ५भगण +गुरु
नील छंद (वर्णिक) – ५भगण +गुरु
२११ २११ २११ २११ २११ २
राम लला अब मंदिर में निकले रहने ,
छूट गया अब टेंट यहाँ सबके कहने ,
देख रही दुनिया अब आकर भारत में –
जश्न यहाँ पर है पहने शुचिता गहने |
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नील छंद (वर्णिक) – ५भगण +गुरु
विधा गीतिका समान्त “आन” स्वर. पदान्त रहे ।
मापनी -२११। २११। २११। २११। २११। २
“विषय – एक अभिमानी की अभिलाषा ”
लोग कहे हम जाल बुने तुकतान रहे |
जो हमने अब गान किया वह भान रहे ||
आकर लोग कहे हमसे तुम नूर यहाँ ,
आप सदा वरदान बने बलवान रहे |
मान मिले जग में जब भी कुछ खास मिले ,
लोग झुकें जय बोल सुनें मम शान रहे |
आदत लोग कहे शुभ प्यार भरी जग में ,
देख यहाँ सच मान मुझे पहचान रहे |
ताकत से जग में सबका अरमान बनूँ
गेह खड़ी जग की जनता दरवान रहे |
चाल चलें जब लोग कहें सब आप धनी ,
पूज मिले कुछ संग सदा भगवान रहे |
कौन यहाँ पर आकर दे गति बोल ‘सुभा’ ,
मैं गति की पहचान रहूँ अरमान रहे |
सुभाष सिंघई