नीम की झूमती डाल के पार
नीम की झूमती डाल के पार
उगता हुआ लाल सा सूरज
पूरे व्यास पर डोलती नीम की पत्तियां
सौंदर्य कई गुना ,
शीतल ,सुंदर सूरज
आंखों को शीतल कर रहा है
और यह नेत्र तो खो गए हैं
उस अनुपम सुबह के सौंदर्य में
जहां मधु की गुंजार है
कलरव का संसार है
महकी सी बयार है
मन में उठ रही मल्हार है,
मन बहुत शांत ,शीतल हो रहा है ,
वहीं सूरज…
चुपके-चुपके प्रतिपल
अपने ताप को शत गुना कर रहा है
छोड़ दिया नीम की पत्तियों का साथ
छोड़ दिया रंगों का हाथ
नभ पर चढ़ता हुआ सूरज
सभी रंगों को विलीन कर चुका है
मध्य आकाश में
श्वेत प्रचंड रश्मियों से युक्त हो
वह तो सूरज है …
आंख मिचौली का साधन नहीं
उसे तो कोई महावीर ही
अपने मुख में कर सकता है
उसकी पूर्ण दैदीप्यमान ,
आभा के साथ….
~माधुरी महाकाश