नीं बू अचार मसाले दार
डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* नीं बू अचार मसाले दार *
काट कर नीबू हमने
मसाले मिलाए
तेल का छौका दिया
एक महीना अन्तराल पर
सन्सनाता प्यार का तोह्फा दिया
तब कहीं जाकर बना
आचार मन माफीक यहाँ
जीभ ले ले स्वाद और चट्खारे
खा रही देश, भारत के लिये
तो एक भी टुकडा, मेरे लिए तो
चाहने वालों ने, रहने न दिया
मन तरसता दिल बरसता आँख रोती
हूक जब उठ्ती जिया मे तो
मन मसोसे रह गया मन मसोसे रह गया
काट कर नीबू हमने
मसाले मिलाए
तेल का छौका दिया
एक महीना अन्तराल पर
सन्सनाता प्यार का तोह्फा दिया
मैं भी लूँगा मुझको देना
एक दुक्ड़ा टेस्ट को
अनगिनत आवाज आती
साहित्य के परिवेश को
हैं अचम्भित मौला जगत के
क्या से क्या ये कर दिया
काट कर नीबू हमने
मसाले मिलाए
तेल का छौका दिया
एक महीना अन्तराल पर
सन्सनाता प्यार का तोह्फा दिया