नींद
नींद, सपने!
एक अलग ही दुनियाँ
किलकारियाँ भरती कल्पनाएँ
पूरे होते अधूरे ख़्वाब
जो खुली आंखों से
हमने देखे थे।
बुनी जिनके इर्दगिर्द
अनगिनत ख़्वाहिशें
पर पूरी हो न सकीं
किन्हीं अनकहे कारणों से।
कसक उसकी हर चलती साँस के साथ
बरकरार है हृदय की गहराईयों में।
उन सभी तकलीफों पर
मरहम लगाते सुनहरे ख्वाब
जो गहरी नींद का दामन
थामें आते,समेत लेते
हर टूटे इंसान को
अपने आलिंगन में!
-अटल©