नींद
नींद
आती है
न आती है
कम आती है
पूरी आती है
विशृंखल आती है
जाती है
न जाती है
शरीर करता है नींद की हर दशा दिशा को संचालित
फॉरेंन एलिमेंट में दवाई–बात
और, गम के वज्रपात और खुशी की बौछारें भी कम नहीं करते उसमें दखल हस्तक्षेप
नींद पर चिंताओं दुश्चिंताओं की पहरेदारी को भी
गम की कोटि का विघ्नकारी प्रभाव ही समझिए उस पर
नींद की गुणवत्ता हर बचपन की एक नहीं हो सकती
बाल मज़दूरी करते बच्चों में
नींद का गहरी आना
या गृहस्थी की चिंता के दबाव में उचट जाना
दोनों की विपरीत दिशा धरना संभव है
कंप्यूटर गेमों की लत में फंसे
नागरी बचपन में भी एक उचटना हो सकता है जबकि
और धन्ना सेठों के घर के तो हर सदस्य को जैसे
पैसों से ही नींद खरीदनी पड़ती होगी
बचानी पड़ती होगी नींद
जीने और स्वास्थ्य के लिए जरूरी नींद की जिद्दोजहद
बेशुमार धन से तिरोहित सुख वाले घरों में
ज्यादा होगी, अधिक कठिन होता होगा नींद का समीकरण बिठाना वहां