नींद
साँझ ढलते ही पलकों की दहलीज पर,
आ जाती है नींद।
संग अपने ख्वाब सुहाने अनगिनत,
ले आती है नींद।
हो जाता है अपना जब दूर कोई हमसे,
रूठकर पलकों से फिर दूर,
चली जाती है नींद।
दिन भर की बेचैनी और थकन के बाद,
अपनी ममता भरी छाँव में हमें,
ले जाती है नींद।
होता है जब कभी मन उदास और निराश,
दूर रहकर आँखों से फिर कितना,
सताती है नींद।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
वर्ष :- २०१३.