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24 Jul 2021 · 2 min read

निष्ठुरता – एक आत्मावलोकन

निष्ठुरता – एक आत्मावलोकन
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
मैं निष्ठुर नहीं था,
निकला था तेरा अंश बनकर,
तेरे स्वरुप से ।
धवल चंद्र के समान निर्मल था,
मुखड़ा मेरा।
धूल धूसरित गंदगी जमती गई,
पर्तें दर पर्त ।
खोता गया अपना स्वरुप,
बचपन की किलकारियों में,
छलकती थी नन्हीं कोपल सी खुशी।
अबोध बालक था मैं,
मुखमंडल की मुस्कान,
अलौकिक प्रेम की आभा थी बिखेरती।
बढ़ चला जब,
यौवन की दहलीज तक।
भयाकुल हो गया फिर,
लालसा की डोर तब बंधती गई ,
चेहरे पर झुर्रियां बनकर,
खुशियां सिमटती गई।
क्रोध,इर्ष्या के रुखेपन से,
चेहरे की भाव भंगिमा बदलती गई ।
तब तो लोग कहते कि,
तू अपने बालकपन में ,
बहुत सुन्दर दिखता था।
हकीकत तो है कि _
निष्ठुरता और निश्छलता ,
दोनों साथ-साथ तो नहीं चल सकती,
बालपन में तो,
घोर शत्रु और सखा पुत्रों के,
मुखमंडल की आभा भी एक सी ही दिखती,
निष्कलंक।
दोस्ती और दुश्मनी दोनों में,
उन्हें तो कुछ भी फर्क़ नहीं लगता ।
तब तो,
लोग कहते हैं कि _
बाल्यपन भगवान का दूसरा रुप है।
लेकिन यह तो शाश्वत सत्य है,
एक बार माँ यशोदा ने,
नटखट कन्हैया से कहा _
मुख खोल तो जरा,
तूने मिट्टी खाई है क्या ?
जब बालक श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोला,
मायारूपी आवरण अदृश्य हो गयी,
कुछ पल के लिए,
और माँ यशोदा ने,
अचिन्त्य शक्ति परब्रह्म सहित,
चर-अचर ब्रह्मांड के दर्शन किये।
सच तो ये है कि बचपन की,
वो मधुर मासूमियत भरी मखमली एहसास,
इस जन्म में फिर से,
प्राप्त कर सकना असंभव है।
फिर से अनिष्ठुर बनने के लिये,
जन्म तो लेना पड़ेगा दोबारा।
किस्सा यही है सदियों से,
नियति और निष्ठुरता का।

मौलिक एवं स्वरचित

© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २४/०७/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
7 Likes · 10 Comments · 957 Views
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