निष्कर्ष
अब तक के जीवन के बाद
पाया ये निष्कर्ष,
आओ करे निरंतर चिंतन
किया क्या इस वर्ष।
दुःखी किया कितनो को,
किनको दे पाए हर्ष
लेखा जोखा पूरा हो
मन से करे विमर्श।
देखा स्वयं को कितना
क्या किया प्रभु का दर्श।
अहम भाव में वृद्धि हुई
या पकड़े हुए है फर्श।
जग पर हुए कितने मोहित
और कितने आकर्ष।
दान दिया कितना मन से
खोलकर हाथ सहर्ष।
किया आंकलन औरों का
अब देखे खुद का अर्श
काम अगर ये हो पाया तो
होगा सच्चा निष्कर्ष।
रामनारायण कौरव “राम”