निश्छल मन
******** निश्छल मन *********
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स्वर्णिम स्वप्न देखता है निश्छल मन
तेरा मेरा मेरा तेरा चंचल मन
सपने निष्ठुरता से दूर, बहुत कोमल
दिन रात देखता रहता है प्रबल मन
ख्वाब फूलों से नाजुक हैं क्षणभंगुर
पल में बिखरते हैं,देखता रहता मन
स्वर्गतुल्य है सैर कराए,भुलाए गम
हर्षोल्लास में हर्षित होता रहता मन
हर्षध्वनि में गूंजने लगे अंबर
परिंदों सा चहचहाता रहता है मन
पर्वतों से मजबूत हों अगर इरादे
मनुहारें मुट्टी में बंद पुलकित हो मन
मनसीरत मनोरथ अगर होते पूर्ण
कोपलें सी फूटती,है प्रफुल्लित मन
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)