निश्छल-नैना
निश्छल-नैना
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कुसुम सरीखे भाव लिए हैं,सुरभित वचनों का गान करेंं।
निश्छल-नैना चित हरते हर,देखें अपना ना ध्यान करेंं।।
शीतल जल-से शांत मनोहर,
स्वच्छ चाँदनी-से कांत प्रखर,
जड़ को चेतन कर देते हैं,
निश्छल-नैना प्राण-सरोवर,
दर्श-सुधा-सा अनुपम भावन,सुर वीणा के ज्यों तान करें।
आतिथ्य स्वर्ग-सा देते दर,अपनेपन में हैं मान करें।।
शरद-धूप का संस्कार लिए,
चन्द्र-प्रभा का विस्तार लिए,
चिंतन का पूर प्रसाद बने,
गंगा की पावन धार लिए,
निर्मल सुखद से अनुशासित हो,नूतन को हर्ष प्रदान करें।
उज्ज्वल रूप लिए तत्पर ये,समदर्शी क्षण संधान करें।।
कल-कल करता झरना मानो,
मधुर उषा का खिलना मानो,
तरुवर-सा निस्वार्थ त्याग,
प्रेरित गीता पाठन मानो,
मधु-सी चितवन शबनम मोती,अमर प्रेम नित-नित भान करें।
हारे पंथी सानिध्य सजा,निजमन से झुक सम्मान करें।।
कविता-सा अक्षय पात्र कहदूँ,
अध्यात्मिक नवरात्रे कहदूँ,
मानव को मानव करते जो,
आत्मा के शुभम् शास्त्र कहदूँ,
निश्छल-नैना जीत रहे मन,जग-नभ की एक उड़ान करें।
गिरतों का संबल बनते ये,रूठों का भी अनुमान करें।।
संबंधों को कायम रखते,
तन को छोड़ो मन को तकते,
भेद नहीं पर से खेद नहीं,
रिश्तों में अपनापन भरते,
इनकी छत्रछाया मखमल-सी,मन कोमलता उत्थान करें।
पाषाण-हृदय भी देखें जो,उनका चित भी उद्यान करें।।
चुंबक बनके खींच रहे हैं,
मानवता पर सींच रहे हैं,
लोहा भी कंचन कर देते,
पारस मानो बीच रहें हैं,
सत्य लिखी परिभाषा दिखते,परिवर्तन का गुणगान करें।
जितने अनुपम अद्भुत दिखते,उतनी सबकी ये शान करें।।
जीवन सपना कुछ और नहीं,
प्रेम रहे बस कुछ और नहीं,
भ्रमित बने रहना जग माया,
सम रहता जीवन दौर नहीं,
समझ रहे हैं तांडव नैना,मधुर समय का रसपान करें।
तालमेल सीखाते रहते,भाव सभी ये सौपान करें।।
पीर पराई समझें अपनी,
एक रखें हैं कथनी करनी,
वटवृक्ष-सी छाया करते हैं,
माला सेवा प्रतिपल जपनी,
दुख अपने खुद ही दूर करो,साहस भरते वच दान करें।
मरहम बनके हँसते रहते,रोगों का सदा निदान करें।।
जग भार नहीं है समझाते,
विष को भी हैं अमृत बनाते,
शक्ति शील सौंदर्य बिखेरें,
रोतों को भी ख़ूब हँसाते,
मस्ती प्रेम भरा जीवन हो,हर उलझन यूँ आसान करें।
सावन-सा मन दृश्य सजाकर,रंजन अपनी ही आन करें।।
मीत बनाकर सबको चलना,
निष्क्रिय बनके हाथ न मलना,
कार्य करो तुम हँसते-हँसते,
भूले से भी रुदन न करना,
निश्छल-नैना प्रीत सिखाते,चाहत को जीत जवान करें।
सबको भाते जोड़ें नाते,जीवन की रीत महान करें।।
–आर.एस.प्रीतम